Wednesday, May 13, 2009

मुल्ला के गधे की खोज

मुल्ला नसीरुद्दीन की कारस्तानी उर्फ़ खोज गधे की
एक स़ी चीजें किसी ना किसी तरह मिल ही जाती है. कहते भी हैं, गुडखोर को शक्कर-खोर मिल जाता है. देखिये ना अनजान शहर में भी नशेड़ी को नशेड़ी, जुआरी को जुआरी, रोगी को सेम बीमारी का रोगी, सत्संगी को सत्संगी, कवि को कवि मिल ही जाते हैं. अंग्रेजी वालों की बात कैसे काटें, वे कहते है : “Opposite attracts Opposite.” मगर देखिये इस में भी कितनी similarity है Opposite और Opposite. बस ऐसा ही किस्सा आपको आज सुनाते हैं.

मुल्ला नसीरुद्दीन का इकलौता गधा गुम हो गया. मुल्ला की वह एक मात्र सम्पति था जिसका उसे declaration देना होता अगर मुल्ला को लास्ट इलेक्शन में किसी भी पार्टी का टिकेट मिला होता, मगर दोनों की समानता के कारण किसी ने ही टिकेट नहीं दिया, कमर सिंह जी से फ़िलहाल बात चाल रही है, मुल्ला भी किसी सितारे से कम नहीं, शायद इस बार काम बन जाये. उफ़……, मुल्ला की संगत का असर, भटक गए हम पटरी से….हाँ तो मुल्ला का गधा गुम हो गया था.
मुल्ला ने सारा गाँव छान मारा अपने गधे की तलाश में. कहाँ कहाँ नहीं गया मुल्ला , खेतों में, खलिहानों में, बस्ती में, वीरानों में, बाग़ बगीचों में, खुले और बंद दरीचों में, जंगलों में अखाड़ों में, ठेकों में मयखानों में, अस्पतालों में हकीमखानों में, बिगड़ी हुई और ओपन-मायिंडेड स्मार्ट गाधियों के दौलत खानों में……सब जगह बस घोर निराशा. संगी साथियों ने भी, मय रिटायर्ड बूढों और बेरोजगार नौजवानों के, अभियान में शिरकत की मगर नतीजा सिफ़र का सिफ़र. मुल्ला बहुत परेशान, गाँव वाले भी हैरान….अब क्या किया जाय ? मुल्ला का यह हाल : उलझन सुलझे ना, रस्ता सूझे ना, जाऊँ कहाँ…मैं जाऊँ कहाँ ? गाँव के नोलेजेबल लोग अपना मंतव्य प्रकट करने लगे. कोई कहता, “मुल्ला का गधा जरा धार्मिक है, तीर्थ का मौसम है, यात्रियों के साथ तीर्थ पर निकल गया हो.” किसी ने कहा, “भाई काजू अवास्तव के कॉमेडी शो में शिरकत करने चला गया हो, क्योंकि गजोधर और गधा एक दूसरे के फैन है.”

जितने मुंह उतनी बातें.

अचानक मुल्ला के दिमाग में बिजली स़ी कोंधी और ऐसा लगा उसे आत्म -ज्ञान हो गया है…. कोई आकाशवाणी कुछ कह रही है .मुल्ला ने आँखें बंद कर ली और झुक गया चारों हाथ पांव के साथ. और मुल्ला ने चौपाये की तरहा चलना शुरू कर दिया. उसने नए अन्दाज़ के साथ वापस उन सब जगहों का दौरा किया जिनका जिक्र ऊपर के पाराग्राफ में किया गया है.(Plz visualize….) अचानक उस ने देखा की एक खड्डे में ‘गधा श्री’ गिरे हुए हैं, टांगे ऊपर की ओर किये, पीठ के बल. लोगों ने कहा नसीरुद्दीन हद करदी है तुम्हारी खोज करने की तरकीब ने. एक सफल विजेता की तरहा मुल्ला ने कहा, “मैने सोचा जब आदमी नहीं खोज सका तो इसका मतलब यह है कि गधे की कुंजी आदमी के पास नहीं है. मैने सोचा क्यूँ नहीं मैं ही गधा बन जाऊँ…..तो मैने सिर्फ अपने मन में यह सोच भरी और ऐसे ज़ज्बात जगाये कि मैं ही गधा हूँ….अगर मैं गधा होता तो कैसे खोजता ? कहाँ कहाँ जाता ? किस तरहा से देखता ? वगेरह, याने पूरा ‘एक्शन प्लान’ गधा स्टाइल में.” मुल्ला फिर लगा स्टेटमैंट देने, “ मुझे खुद ही पाता नहीं कि कब मेरे हाथ झुक कर जमीं पर लग गए, और मैं पूरा गधे जैसा हो गया, और मैने यह एक्शन प्लान इम्प्लीमेंट कर दिया. जब मैं गधे की तरहा रैंकने लगा तो गधा श्री को भी अकुलाहट हुई और उन्होंने भी ‘मिले सुर में सुर हमारा’ स्टाइल में अलाप शरू किया. और हमारी जुगलबंदी ने बता दिया कि ‘गधा श्री’ कहाँ है ?” हर सफल व्यक्ति या ‘एचीवर ’ इस के बाद अपने माता पिता और मित्रों को धन्यवाद् देता है, आप जानते ही है…और खुदा को भी याद किया जाता है….इस पर dialogues फिर कभी.

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