Friday, May 1, 2009

थोथा बडापन

आते देख
नन्ही चींटी को
बोला पर्वत
नादाँ !
तेरे नन्हे
दुर्बल पांव
कैसे कर पाएंगे
मेरी विकट चढ़ाई……….

हे तुच्छ प्राणी !
क्यों नहीं
बदल लेती
राह अपनी ;
इस जटिल मार्ग
की बाधाएं
कर देगी
नष्ट तुम को……………..

चींटी ने कहा:
हे पर्वत !
डरा मत मुझ को
तू बस एक ढेर
है ढेलों का
कर रहा है क्यूँ
वृथा गर्व
स्वयं पर……………..

उड़ते पक्षी ने
सर पर तुम्हारे
कर दी है विष्टा
और लग गया है
तेरी शान में बट्टा;
बता मूढ़ !
कहाँ चली गई
हेंकड़ी तुम्हारी…………

पर्वत हुआ था
आग बबूला
कर बोला चीत्कार
मैं नहीं कोई
ढीला ढाला
बालू का टीला;
बज्र स़ी है
देह मेरी……………..

तुरत लौट चल
अपने बिल को
छोड़ कर ढिठाई ;
चिपका अपना गुरूर
आना मत कभी भी
सम्मुख मेरे……………

चींटी ने दी
ललकार पर्वत को
मत बजा अपने
थोथे गालों को
क्या है तुम्हारी बिसात ?
हे जड़मति !
लगता मुझको
राई जैसा
हिमालय पिता तुम्हारा……..

मैं हूँ चेतन्य
तुम हो जड़
क्या हो संवाद कुछ
तुम से
मेरे अढाई अक्षरों में
बसता रहस्य सृष्टि का
खोज रे पत्थर
है कहाँ
जीव और
आत्मा तुम्हारी………….

2 comments:

  1. kartabya.live@gmail.com best hi

    ReplyDelete
  2. Aate dekh
    Nanhi cheenti ko
    Bola parvat
    Nadan !
    Tere nanhe
    Durbal paon
    Kaise kar payenge
    Meri vikat chadhai……….

    Hey tuchh prani !
    Kyon nahin
    Badal leti
    Raah apni ;
    Is jatil marg
    Ki baadhaayen
    Kar degi
    Nast tum ko……………..

    Cheenti ne kaha:
    Hey Parvat !
    Dara mat mujh ko
    Tu bas aek dher
    Hai dhelon ka
    Kar raha hai kyun
    Vratha garv
    Swayam par……………..

    Udte pakshi ne
    Sir par tumhare
    Kar di hai vista
    Aaur lag gaya hai
    Teri shan men batta;
    Bata Moodh !
    Kahan chali gayi
    Henkadi tumhari…………

    Parvat hua tha
    Aag babula
    Kar bola chitkar
    Main nahin koyi
    Dheela dhala
    Balu ka teela;
    Bajra si hai
    Deh meri……………..

    Turat lout chal
    Apne bil ko
    Chhod kar dheetayi;
    Chipaka apna guroor
    Aana mat kabhi bhi
    Sammukh mere……………

    Cheenti ne di
    Lalkar parvat ko
    Mat baja apne
    Thothe gaalon ko
    Kya hai tumhari bisaat ?
    Hey Jadmati !
    Lagta mujhko
    Rayi jaisa
    Himalaya pita tumhara……..

    Main hun chetnya
    Tum ho jad
    Kya ho samvad kuchh
    Tum se
    Mere adhai akshron men
    Basta rahasya sristi ka
    Khoz re pathar
    Hai kahan
    Jeev aaur
    Atma tumhari…………

    ReplyDelete