Wednesday, May 13, 2009

मुल्ला नसीरुद्दीन ने झंडा फेहराया

मुल्ला नसीरुद्दीन का झंडा फहराना और तक़रीर

चलिए आपको एक किस्सा इसी सिलसिले में और सुना डालते हैं. आप तो जानते ही हैं एक जमाना था जब एशिया और अफ्रीका के बहुत से मुल्कों में अंग्रजों, डचों , पुर्तगालियों या फ्रांस वालों का राज होता था. भारत, पाकिस्तान, श्री-लंका आदि पर तो अंग्रेजों का राज था. मॉरिशस पर फ्रेंच लोगों ने राज किया था. साउथ अफ्रीका ब्रिटिश रूल के तहत था. फिर एक दौर आया जब सब जगह आज़ादी के लिए आन्दोलन और क्रांतियाँ हुई. गोरों ने अपने उपनिवेशों को आज़ाद कर दिया.

ऐसा ही एक द्वीप था अफ्रीका महाद्वीप में, जहाँ की आबादी भारतीय मूल के लोगों की थी, जो की पंजाबी, भोजपुरी, हिंदी और उर्दू बोलते थे. उन्होंने भी कोई खूनी संघर्ष किया होगा या शांतिपूर्ण सत्याग्रह किसी राष्ट्रीय नेता के झंडे तले…..और गोरों का बिस्तर गोल किया होगा…जैसा की हमारे यहाँ हुआ था : “पीकर देशप्रेम की भंग, जीता आज़ादी का जंग, गोरा लन्दन पहुँचाया, ओ! प्यारे गाँधी महात्मा.” हमारा तिरंगा झंडा था, उनका कोई पच-रंग रहा होगा….. उनके यहाँ की नेता मैडम आंधी थी. मैडम आंधी के नेतृत्व में वहां की आज़ादी की लडाई सफलता पूर्वक लड़ी गयी और वह देश आज़ाद हो गया. हमारी तरह, दुनिया के हर गुलामी से आज़ाद हुए मुल्क की तरह, और कुछ किया जाए या ना किया जाए , आज़ादी की साल-गिरह को झंडा जरूर फहराया जायेगा…..लोग-बाग़ देशभक्ति के वही पुराने गाने गायेंगे….शहीदों को याद करेंगे….प्रभात-फेरी जुलूस वगेरह निकले जायेंगे इत्यादि. हाँ हर स्कूल में जरूर झंडा फहराया जाता है….बच्चों में वनस्पति घी में बने लड्डू जरूर बनते जाते हैं, किसी स्थानीय नेता का भाषण जरूर होता है. हाँ तो यह किस्सा उस अफ्रीकी आईलेंड कंट्री का है, जो गोरों की गुलामी से आज़ाद हुआ था.

मुल्ला नसीरुद्दीन वहां के स्वतंत्रता सेनानी थे. आज़ादी की लडाई में उन्होंने मैडम आंधी के साथ कई आन्दोलनों में शिरकत की थी, कभी आज़ादी के दीवानों की हेयर -कट करते थे, थके मंदों की मालिश करते थे, खाना भी पका देते थे. काम का क्या, मजदूरी मिलती तो क्या, थे तो वोह आज़ादी के दीवानों के संगी-साथी. एक-आध बार जुलूस में पचरंगा झंडा उठा कर भी चले थे, जेल भी गए थे. मुलुक आज़ाद हुआ, मुल्ला भी कालांतर में स्वतंत्रता सेनानी के रूप में रजिस्टर्ड हो गए. सरकार से पेंशन भी पाने लगे. आज़ादी के बाद उन्होंने हेयर -कट वगेरह का काम छोड़ दिया और लोकल पौलिटिक्स में हिस्सा लेने लगे,लोकल का मतलब कसबे की राजनीती. कसबे की पार्टी यूनिट के वेह प्रेसीडेंट थे. नेताओं की तरह चूड़ीदार अचकन पहनते, तिरछी नाव जैसी टोपी लगते थे. मुल्लाहर साल कसबे की मिडल स्कूल में आज़ादी की सालगिरह के दिन झंडा फहराते थे. यही नहीं कसबे के किसी दुकानदार के आर्थिक सौजन्य से बच्चों में डालडा वाले लड्डू भी बंटवाते थे.

कोई पांच दशक बीत गए आज़ाद हुए. मुल्ला भी उम्र-दार होगये. मोतिया-बिन्द होने की वज़ह से दीखने भी कम लगा. फिर अफीम की आदत, बस उंघते से रहते. शादी मियां ने की नहीं थी या हुई नहीं थी. दूर के किसी रिश्तेदार को कालांतर में मय बीवी के अपनी देखभाल के लिए रख लिया था. लोगों का क्या, लोगों का कम है कहना, मीडिया की तरह, चटपटी खबरे बनाना और प्रचार करना. खुदा जाने सच है या झूठ कुंवारे मुल्ला पर उस रिश्तेदार की बीवी के साथ EMR के आरोप लगते थे. वैसे भी राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के सम्बन्ध में ऐसा चरित्र-हनन वेस्टेड इंटरेस्ट द्वारा किया जाना आम बात है. फिर छोटी जगह, हमारे मुल्ला वज़ह बेवजाह थोड़े बद-नाम हो गए थे.

आब सवाल उठता है, स्कूल के हेड-मास्टर सिर्फ मुल्ला को ही आज़ादी की सालगिरह पर झंडा फ़हराने क्यों बुलाते थे ? मुल्ला की क्वालिफिकेशंस और वज़हों की फेहरिस्त कुछ इस तरह थी :

१) पुराने स्वतंत्रता सेनानी थे. (असलियत आपको मालूम ही है).
२) लोकल पार्टी यूनिट के अध्यक्ष थे.
३) मैडम आंधी की टीम में ग्रुप फोटो में दिखाई दिए थे.
४) चूड़ीदार , अचकन और तिरछी टोपी की फंकी ड्रेस धारण करते थे.
५) उनके पास एक ‘पचरंगा’ (झंडा) वरसों से संभाल कर रखा हुआ था, जो हर सालगिरह पर स्कूल को निशुल्क मिल जाता था.
६) छोटे मोटे लोकल चुनाव लड़ चुके थे.
७) स्थानीय दुकानदारों के लिए वेह सरकारी इंस्पेक्टरों से liaison करते थे, छोटा मोटा कोर्ट कच-हरी का काम भी करा देते थे. इसलिए लड्डू-वितरण प्रोजेक्ट को finance करने के लिए किसी दूकान्दार को पकड़ सकते थे.
८) थोडा मोड़ा भाषण भी दे लेते थे.
९) हेड-मास्टर्स साहिब और मुल्ला की होबीस और पैशन्स भी काफ़ी मिलते जुलते थे. ऑरकुट प्रोफाइल बनायीं जाए तो काफ़ी कॉलम्स के जवाब सोशल और पर्सनल में एक से मिलेंगे. हिंट स्वरुप समझिये मुल्ला के घर रहनेवाली शरबती बी से हेड मास्टर साहिब की भी बात-चीत थी.

हाँ जो जनाब यह किस्सा पिछली सालगिरह का है. एस युस्युअल हेड मास्टर साहिब ने चपरासी को भेजा मुल्ला के घर झंडा लिवा लाने के लिए. मुल्ला अफीम के नशे में धुत, नज़र भी कमज़ोर, शरबती और उसका खाविंद भी घर पर नहीं. मुल्ला ने झंडा उठाया और पोलीथीन के एक थेले में लपेट कर चपरासी को दे दिया. दर-असल मुल्ला की कमज़ोर और नशे में डूबी नज़र झंडे को ठीक से पहचान ना सकी, और उस ने गलती से शरबती का लहंगा झंडे की जगह लपेट कर दे दिया.

हेड मास्टर साहिब भी बड़े मुश्तैद . उन्होंने रात ही में ‘झंडे’ को पोल पर चढवा दिया बण्डल बना कर एक लम्बी सी रस्सी के साथ, जिसे खिंच कर दूसरे दिन सवेरे मुल्ला के कर-कमलों से झंडात्तोलन होना था.

सर-सुबह सभा जुटी. हेड मास्टर, मुल्ला, लड्डू का financier दुकानदार, और कसबे के दो चार गणमान्य बाशिंदे मंचस्थ हो गए. Audience में अभिभावक, छात्र, अध्यापक, और कसबे के अन्य usual तमाशबीन थे. मुल्ला ने रस्सी खींची, और जो चढ़ाया गया था वह परचम याने ‘शर्बतिजी का लहंगा’ शान से खम्बे पर फहराने लगा. लोगों का ध्यान उस पर पड़ा…मगर मुल्लाने ऊपर देखे बिना अपना भासन देना शुरू कर दिया. मुल्ला नसीरुद्दीन फरमा रहे थे :

“भाइयों, बहनों और इस देश के होनहार बालकों !

आज का दिन हम (झंडे/ ‘?’ की तरफ इशारा कर) इस महान परचम के तले मना रहे हैं. मैंने ही नहीं हज़ारों लाखों नव-युवकों ने अपनी जवानी इस पर कुर्बान कर दी, अपने आप को मिटा दिया, मगर कोई ग़म नहीं, हमें गर्व है.

हेड मास्टर साहिब भी मेरे ही तरह हैं, और जिन भाई की तरफ से आज के लड्डू बंटेंगे वेह भी इस मुआमले में मेरे जैसे ही हैं. हम सब इसके पुजारी हैं, इसके दीवाने हैं, इसके परवाने हैं.और मैं आप सब को भी गुजारिश करूँगा की आप भी हमारे इस महान प्रतीक के प्रति ना मिटने वाला प्यार रखें.

मुझे याद आ रहे हैं वेह दिन जब मैडम आंधी इसे उठा कर चलती थी, तो बूढों, युवकों और बालकों में जोश भर उठ-ता था.

आज़ादी के संघर्ष में इसका बहुत महत्व था. इसका दीवाना हर गाँव था, हर क़स्बा था, हर शहर था. हुजूम के हुजूम इस पर मर मिटने का पक्का इरादा रखते थे.

हमारी बहनें भी किसी से कम नहीं थी..वेह जब सडकों पर इसे उठा कर चलती थी तो गोरों के दिल दहल उठ-ते थे.

दोस्तों, यह हमारी परंपरा है, यह हमारी एकता का प्रतीक है. हमें आज के दिन प्रतिज्ञा करनी हैं की हम हमेशा की तरह इसको अपना चहेता रखेंगे, इस का साथ देंगे. दुश्मन की बुरी नज़र इस पर नहीं पड़ने देंगे. हम अपने दिल से इसकी खिदमत करेंगे. जब भी कोई संकट हम पर आएगा हम इसे उठाकर इसकी छांव में अपने आपको महफूज़ कर लेंगे.

दोस्तों, इसे सलाम कर के मैं अपना स्थान ग्रहण करता हूँ.

जय……..”

तो ऐसा हुआ communication gap, मुल्ला किसी कांटेक्स्ट में बोल रहे थे, और वहां अनायास ही कांटेक्स्ट दूसरा बन गया था. हेड मास्टर का तबादला हो गया, और नए हेड मास्टर ने मुल्ला को बुलाना बंद कर दिया.

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