Wednesday, May 13, 2009

मुल्ला नसीरुद्दीन का परहेज़ ..........


मुल्ला नसीरुद्दीन बीमार पड़ गए. हकीम साहिब के पास किसी "हमदर्द दवाखाने" में चले गए इलाज कराने.

पूछा हकीम साब ने, "मुल्ला एक दिन में कितनी बीड़ी हो ?"

मुल्ला ने कहा, "पुरे दिन में कोई बीस बाईस बार."

हकीम साब कहने लगे, "अगर मुझ से इलाज कराना है तो बीड़ी में परहेज़ बरतना होगा."

मुल्ला चुप था, क्योंकि परहेज़ और मुल्ला सोचना ही फजूल. खैर मुल्ला को परेशान देख, हकीम सब ने फ़रमाया, "चलो मुल्ला आज से एक पाबन्दी कर लो. सिर्फ खाने के बाद ही एक बीडी पियोगे. हाँ यह कुछ काढ़े और गोलियां भी है, वक़्त से खाते रहना और दो महीने बाद फिर से दिखाना."

मुल्ला दवा लेकर घर गया, और जैसा हकीम साहिब ने कहा था ठीक वैसी ही पाबन्दी से दवा और परहेज पर ख़याल रखने लगा. मुल्ला की सेहत सुधरने लगी. दो महीने बाद मुल्ला हकीम साहिब के इजलास में हाज़िर हुआ.मोटे-ताज़े मुल्ला को देख हकीम साहिब बहोत खुश हुए.

हकीम इतराए, "देखो मुल्ला मेरी दवा और परहेज़ से तुम्हे कितना फायदा हुआ ? हे हे हे."
कह कर हकीम साहिब उगालदान में पान की पीक थूकने लगे.

मुल्ला ने हकीम साहिब की सुरमा भरी आँखों में झांकते हुए शैतानी तवस्सुम के साथ कहा, " हकीम साहिब मुझे भी शाबाश दीजिये, आखिर एक दिन में बीस बार खाना-पीना करना भी कोई आसान काम नहीं है."

हकीम साहिब अपनी दुपल्ली टोपी उतर कर सर खुजाने लगे.

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