Thursday, May 7, 2009

वो सूनापन (दीवानी सीरिज)

यह ट्रैफिक 'वनवे' भी था. 'बोथ वेज' भीहो जाता था यदा कदा…..हाँ ऐसा भी बहुत बार हुआ था. अब यह वाकया ही ले लीजिये.

मेरे ममेरे भाई का इश्क एक गैर-हिन्दू लड़की से हो गया था. दोनों कि स्थिति दो देह और एक आत्मा जैसी थी. मैं भैया से जूनियर था, ननिहाल में ही पला बढा था, वह मेरे आदर्श थे, पढने में, लिखने में, खेलने में, आदतों और आदर्शों में. मेरे अधिकाँश मैनर्स /एक्स्प्रेशंस /मैनरिज्म उन जैसे ही हुआ करते थे. मगर उनके इस ‘अफेयर ’ के मुआमले में मेरी स्थिति एक खलनायक से कम नहीं थी, मैं भी सोचों से बहुत कंजर्वेटिव था खास कर इस इंटर-रेलिजिन रिलेशनशिप को लेकर.. ..या कहा जाय, परिवार के कुछ बड़ों ने मुझे चने के झाड पर चढ़ा कर मेरा अहम् पोषण कर दिया था जैसा कि किशोर-अवस्था में होता है…बहरहाल मैं 'इधर से उधर' किया करता था…..

भैय्या को MBA के लिए US भेज दिया गया….मगर उनके इश्क कि आग ठंडी नहीं हुई बल्कि प्रबल हो गई……कतिपय महत्वपूर्ण परिवारजनों की असहमति के बावजूद दोनों कि लव-कम-सेमी-अरेंज्ड मैरिज हो गई…..दोनों US जा बसे…

नियति को ना जाने क्या मंजूर था, दीवानी का परिवार भी उसी समुदाय से बिलोंग करता था , भाभी के खानदान से ही थी वोह भी. कालान्तर में विरोध के तीव्र स्वरों ने क्या किया, यह बाद की बात है और इसका अपना इतिहास है जिसका बोझ आज तक मेरे दिल-ओ- जेहन पर है.

मुझे NY University में कुछ शार्ट टर्म रिसर्च के लिए जाना था.भैय्या भाभी की insistence थी कि मैं उनके साथ रहूँ , ताकि पुरानी बातों को भुलाया जा सके और नयी बातों को नए नज़रिए से देखा जा सके. मैं उनके साथ रह रहा था…… वीकेंड पर हडसन दरिया के किनारे बैठ कई लम्बे डिसकशंस हम लोग करते थे-इश्क पर, रिलीजियस बिलीफ पर, individuality पर, लाइफ पर, हमारे feudal family background और उसके offshoots इत्यादि पर.

अपनी नोट बुक में कुछ कलम घिसाई करता रहता था……..भाभी ने मेरे लिखे एक सफे की कॉपी कर के दीवानी को भेज दिया था……..उस अस्फुट से लिखे को आपके साथ शेयर कर रहा हूँ :

विनेश की बात : तुम बिन....

# # #

सूना सूना सा
लगता है
तुम बिन...

हर लम्हे
खयालों में
समायी हो तुम,
ना जाने क्यों
होंश गवां बैठा हूँ मैं,
दिल में जेहन में
बस ज़िक्र है तेरा,
सोचों के हर घर में है
बस तेरा ही बसेरा,
हुआ नहीं था पहिले
ऐसा कभी,
सूना सूना सा
लगता है
तुम बिन...

भोर के उजास में
तुम हो,
सुबह की किरण के
प्रकाश में
तुम हो,
भाभी की नमाज़
पूजन अर्चन
और
भजनों की
धुन में
तुम हो,
भैय्या के स्नेह
और
सौहार्द में
तुम हो,
योग के
हर आसन में
तुम हो,
प्राणायाम के
हर श्वसन में
तुम हो,
नाश्ते से उठती
गरम खुशबू में
तुम हो,
घर की सुबह की
हर बात में
तुम हो,
ना जाने क्यों
होता है
महसूस मुझ को ऐसा
सूना सूना सा
लगता है
तुम बिन....

भैय्या की सुबह की
हर हरक़त
दफ्तर जाने से पहिले की
हर जुम्बिश
भाभी की हर नरमी
और
सरगर्मी में
तुम हो,
दफ्तर जाते वक़्त
भैय्या की बैचैनी,
भाभी की प्यारी
'बाय बाय' में
तुम हो
दफ्तर पहुँच के
भैय्या के पहिले फ़ोन
और
उसके इंतज़ार में
इधर उधर घूम रही
भाभी की
अकुलाहट में
तुम हो
ना जाने क्यूँ
इन दोनों की
हर बात में
तुम हो
तुम हो
तुम हो
सूना सूना सा
लगता है
तुम बिन.......

बात दीवानी की : जी करता है........

एक दिन देखता हूँ, मेरी स्टडी टेबल पर एक लिफाफा रखा हुआ है (भाभी ने रखा था) उसमें दीवानी कि यह तहरीर थी :

# # #
जी करता है
मेरा भी,
लिखे मुझे भी कोई
एक प्यारी स़ी पाती
जिसको पढ़कर
हो जाऊँ मैं
धरती-धरती
कोई दर्श्नातुर आये
मेरे दर पर
इधर उधर की बातों में
मुझको उलझा कर
इकटक ताके मुझे
चकोर-सा
पलक ओट से
जी करता है
मेरा भी…..

जी करता है
मेरा भी,
कोई सौ सौ बार
पूछने पर
नत हो कर
व्यर्थ कुरेदे
पैर अंगूठे से
धरती को
कांपते होंठ
धड़कते दिल से
चुप के कह दे
“कैसे कहूँ
प्रेम है मुझ को तुम से कितना ?”
और मैं
उसकी
इसी सादगी पर
मिट जाऊँ
जी करता है
मेरा भी...

जी करता है
मेरा भी,
लिखे मुझे भी कोई
इक प्यारी स़ी पाती
जिसको पढ़ कर
हो जाऊँ मैं
धरती-धरती....


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