Sunday, September 13, 2009

मोहब्बत मुल्ला की.........

आदमी बड़ा ही अजीब जंतु है. हर बात को अपने तौर पर देखता है और उसका इंटरप्रेटेशन भी तदनुसार करता है. कभी कभी तो ऐसा भी होता है वह देखता कुछ है, सोचता कुछ है, निरूपण कुछ करता है किन्तु बारी जब कहने कि आती है वही कहता है जो उसके मनोनुकूल हो, हितों के अनुसार हो, या जो उसे किसी भी काल्पनिक अथवा वास्तविक असुरक्षा से टेम्परेरी रिलीफ उपलब्ध करा सकता हो. कभी कभी व्यक्तियों के वचन उनके माहौल, धंधे अथवा मान्यताओं के अनुरूप भी होते हैं. कहने का तात्पर्य यह कि बोले या लिखे गए शब्द बहुत ही इंटरेस्टिंग मौके देते हैं सोचने समझने और हंसने के.

मिसाल के तौर पर इश्क में डूबे लोगों के संवाद लीजिये. एक हलवाई अपनी प्रेमिका से कहेगा :
"रसीली ! तुम तो इमरती कि तरह हो, रस से सरोबार, तरह तरह के घुमाव लिए हुए, तेरी खुशबू देशी घी की सौंधी सौंधी मेह्कार है......जी करता है कि ....."
रसीली रेस्पोंड करेगी, " मीठा लाल ! तुम भी तो पेड़े की तरह सॉलिड हो........और घुल भी जाते हो.....मगर क्या करूँ मुझे तो मीठे के साथ नमकीन भी भाती है......कभी मीठा- कभी नमकीन, फिर मीठा......."
मीठा लाल कहेगा, "रसीली मेरी जलेबी ! जमाना बदल गया है, हलवाईयों के यहाँ भी R & D होने लगी है, काहे फ़िक्र कर रही हो तेरे लिए मैं 'two-in-one' बन जाऊंगा."
रसीली कहेगी, "नहीं खानी हमें तुम्हारी 'two-in-one' मीठा के बाद नमकीन चाहिए...उंह..."

एक और मिसाल. खानदान से शासक, न्यायाधीश और सलाहकार हैं ना हम, फरियाद सुनना, उसपर माथा पच्ची करना, भाषण देना, फैसला करना.....हमारी फ़ित्रत हो गयी है. आजकल किसी को सलाहकारी के लिए वक़्त नहीं, कोई टेम खोटी नहीं करता मगर हम है कि इन्तेज़ार में रहते हैं कि कोई मुर्गा फंसे......तरह तरह के मुआमले आ जाते हैं हमारे पास विचार विमर्श और पंचौट के लिए. एक बार किसी कंपनी के दो अफसरों ने मिलकर घोटाला किया परचेज में. 'बूटी' के बंटवारे को लेकर मतभेद हो गया.......चले आये दोनों नमकहराम हमारे पास अपनी फरियाद लेकर. मैंने सोचा अनैतिक कार्य किया है इन लोगों ने. मुझे इसमें कोई भी रूचि नहीं लेनी चाहिए. मगर 'पंच बाज़ी' कि खुजली दोस्तों बड़ी तीखी होती है. बुद्धि ने बोला- "मासटर ! तुम्हारा काम तो 'डिस्पुट' को समझ कर निर्णय करना है....जो विद्यमान है दोनों के बीच."
खैर हमने इजलास लगायी. सुनवाई की....

श्याम लाल बोला---"सर जी ! यह राम लाल बड़ी कुत्ती चीज है. देखिये ना इसने कितनी बेइमानी की है, 'किक बेक' की रकम मुझे ठीक से नहीं बताई."

रामलाल ने अपना पक्ष रखा--- "सर जी ! आप इसकी बातों में बिलकुल मत आना. श्याम लाल झूठा है एक नंबर का झूठा. 'टेक्नीकल स्पेसिफिकैशन्स' को अप्रूव करने में इसने तन और धन दोनों पाए थे , मगर मुझे भनक तक नहीं होने दी. यह तो मैं भी उस गेस्ट हाउस में ठहरा तो केयर टेकर से मालूम हुआ......"

श्यामलाल बोला-"सर जी ! बड़ा कमीना और ऐय्यास है यह रामलाल्वा, पूछिये इसे, क्यों गया था वहां....क्या इसने भी वहां जो कुछ पाया मुझे बताया...गया गुज़रा कहीं का."

देखिये दोनों चरित्र आत्माएं कैसे कैसे निर्वचन कर रही है. अपने साथ जो हुआ वह धोखा है, मैंने किया वह ठीक, मगर दूसरे ने किया वह ऐय्यासी है, बेईमानी है..... और तुर्रा यह कि दोनों एक नंबर के पाजी हैं.

कोई ईमानदार अफसर गलत काम नहीं होने देता तो कहा जाता है : " बनर्जी बड़ा बदमाश है, बेवकूफ भी, साला घिसे कपडे पहनता है मगर जो देते हैं उसे रिफ्यूज करता है, क्या हुआ जो बहुत पढ़ा लिखा है...MA Phd है अक्ल हम मेट्रिक फैलों जैसी भी नहीं...उंह...."

आप सोचेंगे तो ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे. कहने का मतलब यह है कि इन्सान अपने अनुसार घटनाओं, बातों, व्यवहार आदि का निर्वचन करता है, सत्य को 'इग्नोर' करने में ही उसे ' कम्फर्ट ज़ोन ' मिलता है.

अब मुल्ला की ही लें. जवानी के दिनों मुल्ला एक करोड़पति बाप की बेटी के प्रेम में था और कहता था : "चाहे जीवन रहे कि जाये, तुझे नहीं छोड़ सकता. मरने को तैयार हूँ, अगर ऐसी कोई नौबत आ जाये. शहीद हो सकता हूँ, मगर तुम्हें नहीं छोड़ सकता....साथ जियेंगे साथ मरेंगे...."

एक दिन लड़की बहुत उदास सी थी. उसने नसरुद्दीन से कहा, " सुनो ! मेरे बाप का दीवाला निकल गया वह सड़क पर आ गया."

मुल्ला बोला, " मुझे पहिले से ही मालूम था कि तेरा बाप ज़रूर कुछ ना कुछ गड़बड़ खड़ी करेगा और हमारी शादी नहीं होने देगा."

मुल्ला विवाह जिस वज़ह से कर रहा था, वह ख़त्म हो गयी थी, मगर मुल्ला कि कसक उस से ऐसा कहला रही थी....लोजिकली बाप के सर ठीकरा फूटा रही थी.

हमारे रिश्ते..... हम कहतें कुछ और हैं , कारण उनका कुछ और ही होता है. हम बताते रहते कुछ और हैं ....मज़े की बात यह है कि हम जो बताते हैं, हो सकता है कि हम वैसा ही मानते रहे हैं...कि यही सच है. हम इस तरह खुद को भी धोखा दे लेते हैं. हम सिर्फ दूसरों को धोखा देते हैं केवल ऐसी बात नहीं, यह करम हम खुद पर भी कर लेते हैं. बड़ा चतुर चालाक है आदमी ......खुद को भी धोखा दे लेता है.








,

No comments:

Post a Comment