Tuesday, September 29, 2009

अमृत........

...

कलमकार
मत बना
कलम को
कुंठित मूर्तिकार की छैनी
भोगी मानव का अलगौज़ा
निर्ल्लज चित्रकार की कूची
यह तो है
साक्षात् सरस्वती
करने आलोकित
आत्मा को
मिटाने जीवन-द्वंद को
पहचान
क्षमता इसकी
गवां मत तू
इसकी नोक से
झरते अमृत को
सस्ती राग-रागिनियों में
व्यर्थ के बिम्ब-प्रतिबिम्बों में
शब्दों के जाल
मिथ्या आलम्बों में........

No comments:

Post a Comment