हो गयी उसको आस-निरास
जग गयी दिल में अंधी प्यास
अबहूँ आये ना कुछ भी रास
रहता गुम-सुम और उदास
किस में अटक गया
रे जोगी भटक गया !
बस कांटे खुद के झाड़
बनायीं बिरथ ही तू ने बाड़
सबद है झूठी थोथी राड़
कि दे तू पोथी पन्ने फाड़
जेहन तेरा सटक गया
रे जोगी भटक गया !
मन के बंद पटल तू खोल
यह तेरे झूठे से हैं बोल
करे ना खुद का तू क्यूँ मोल
जगत से कैसी झालमझोल
आइना चटक गया
रे जोगी भटक गया !
सुई का नहीं साधा निसान
फजूल में क्यूँ रहता परेसान
सच से रहा सदा अनजान
करता रहा तू बस एहसान
धागा अटक गया
रे जोगी भटक गया !
लीन्ही जप माला तू हाथ
अंतर मन का रहा ना साथ
तेरी निरथक है सब बात
कि जैसे सूखे सूखे पात
बीच में लटक गया
रे जोगी भटक गया !
किसी ने पूछी जात ना पांत
ज्ञान को देखा..देखा ना गात
जोगी को मिल गया ऐसा साथ
कि जैसे बिन बादल बरसात
मनुआ मटक गया
रे जोगी भटक गया.......
जग गयी दिल में अंधी प्यास
अबहूँ आये ना कुछ भी रास
रहता गुम-सुम और उदास
किस में अटक गया
रे जोगी भटक गया !
बस कांटे खुद के झाड़
बनायीं बिरथ ही तू ने बाड़
सबद है झूठी थोथी राड़
कि दे तू पोथी पन्ने फाड़
जेहन तेरा सटक गया
रे जोगी भटक गया !
मन के बंद पटल तू खोल
यह तेरे झूठे से हैं बोल
करे ना खुद का तू क्यूँ मोल
जगत से कैसी झालमझोल
आइना चटक गया
रे जोगी भटक गया !
सुई का नहीं साधा निसान
फजूल में क्यूँ रहता परेसान
सच से रहा सदा अनजान
करता रहा तू बस एहसान
धागा अटक गया
रे जोगी भटक गया !
लीन्ही जप माला तू हाथ
अंतर मन का रहा ना साथ
तेरी निरथक है सब बात
कि जैसे सूखे सूखे पात
बीच में लटक गया
रे जोगी भटक गया !
किसी ने पूछी जात ना पांत
ज्ञान को देखा..देखा ना गात
जोगी को मिल गया ऐसा साथ
कि जैसे बिन बादल बरसात
मनुआ मटक गया
रे जोगी भटक गया.......
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