पंछी
कभी न करता
संग्रह
अन्न का
जल का
उसके लिए
न फौज है
न पुलिस
न ही कचहरी
न ही वकील और जज
न डॉक्टर
न दवाएं
न पंडित
न मौलवी
न जनम-विवाह-मरण के
संस्कार
बस जीता है वह शान से
हर क्षण के अनुसार
मगर इन्सान
लगा है
परिग्रह की होड़ में
ग्रसित हो असुरक्षा से
बातें करता है दंभ भरी
कुदरत को काबू करने की
चाँद को छूने की
जीव की रचना कर पाने की
फ़िर भी ठोंकता है सर वक्त बेवक्त
रचता है स्वांग तरह तरह के
हर रात और हर दिन
जीने का करता ही दिखावा
मरता है क्षण क्षण
बस यही है
उसका अधूरापन.....
कभी न करता
संग्रह
अन्न का
जल का
उसके लिए
न फौज है
न पुलिस
न ही कचहरी
न ही वकील और जज
न डॉक्टर
न दवाएं
न पंडित
न मौलवी
न जनम-विवाह-मरण के
संस्कार
बस जीता है वह शान से
हर क्षण के अनुसार
मगर इन्सान
लगा है
परिग्रह की होड़ में
ग्रसित हो असुरक्षा से
बातें करता है दंभ भरी
कुदरत को काबू करने की
चाँद को छूने की
जीव की रचना कर पाने की
फ़िर भी ठोंकता है सर वक्त बेवक्त
रचता है स्वांग तरह तरह के
हर रात और हर दिन
जीने का करता ही दिखावा
मरता है क्षण क्षण
बस यही है
उसका अधूरापन.....
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