मुल्ला बड़े अच्छे वक्ता हो गए हैं. उसकी नेट्वर्किंग का कमाल तो है ही, आस्था चॅनल और संस्कार टीवी पर कई दिन चिपके रहना भी उनको एक्सपर्ट बना दिया है. आत्मा, परमात्मा, पाप पुण्य, धर्म-कर्म, नैतिकता, पूजा-पाठ आदि पर धड़ल्ले से बोलतें है मुल्ला. ज्योतिष, हीलिंग, योग की बातों में भी दखल रखने लगे हैं मुल्ला इन दिनों.
मानव धर्मी हो गए हैं मुल्ला आजकल. आयोजकों द्वारा सभाओं में बोलने के लिएमुल्ला को जगह जगह बुलाया जाता है ( ऑफ़ कोर्स अगेंस्ट पेमेंट--मुल्ला कि दरें कम हैं ना इसलिए ) . हिन्दू और जैनों में मुल्ला ज्यादा लोकप्रिय हो गएँ हैं, कारण एक विधर्मी जब आपके धर्म कि बातें करने लगता है तो अपना धर्म कुछ और महान लगने लगता है. बुजुर्ग लोग कहते भी हैं कि धर्म और बच्चे अपने और बीवियां/खाविंद हमेशा दूसरों के अच्छे लगते हैं. सुना होगा आपने-"हमारे धर्म की हर बात विज्ञानसम्मत है....उस दिन गुरूजी कह रहे थे............" या "बबलू को देख कर बस का कंडक्टर इतना खुश हुआ कि उसको गोद में उठा लिया...मेरी गोद से ले लिया........" या "तुम से तो अच्छे बगलवाले माथुर साहब हैं........." या " देखो मालती को कितना अच्छा कैरी करती है खुद को, क्या ड्रेसिंग सेंस है.....एक तुम हो गाँव की गंवार......." हाँ तो मैं भटक गया हूँ 'एज यूजुअल' सब्जेक्ट से.....
मुल्ला कोई भी काम करने से पहिले अपनी घड़ी ज़रूर उतारते हैं. चाहे भाषण देना हो या कुछ और करना हो......एक दफा मुल्ला की नयी 'ओमेगा' खो गयी, जो शायद किसी NRI महिला श्रोता ने विशिष्ठ बनने के लिए मुल्ला को भेंट चढाई थी. मुल्ला परेशान...गयी तो घड़ी कहाँ गयी. ? सब जगह खोज ली मगर कहीं नहीं मिली. पूछ ताछ भी की ...मगर नतीजा सिफर. मुल्ला ने मुझ से अपनी व्यथा कही. मैंने कहा, "मुल्ला लगता है तुम्हारे किसी श्रोता का काम है यह, क्योंकि धर्म सभाओं में धर्म का उल्लंघन करना आम बात है, जूते चप्पलों, छतों, चैन ,घड़ी, पर्स इत्यादि का इन्ही गेद्रिंग्स में 'चेंज ऑफ़ हेंड्स ' होता है........और भी बहुत कुछ होता है," मैंने तनिक शर्मा कर कह डाला था मेरे यार मुल्ला को.
फिर कहा मैंने, " मुल्ला ! आजकल तुम लगातार एक ही संस्था की सीमित श्रोताओं वाली सभाओं में बोल रहे हो तो चोर का क्ल्यू वहीँ से हासिल होगा. कल तुम 'चोरी' पर बोलो और श्रोताओं के चेहरे पढो, उम्मीद है कि क्ल्यू मिल जाये."
मुल्ला अगले रविवार जब मेरे पास आया तो 'ओमेगा' पहने हुए था. मुझे भी तारीफ़ की तशनगी सताने लगी. मैंने कहा, "मुल्ला मैंने सही मशविरा दिया था ना, देखो तुम्हारी 'ओमेगा' मिल गयी."
मुल्ला बोला, "यही तो तुम बुद्धिजीवियों की समस्या है. हर बात बेबात में श्रेय लूटना चाहते हो....भई इसका क्ल्यू जानने क्र खातिर मैं 'चोरी' पर बोला ज़रूर था,मगर उस दिन नहीं क्ल्यू तो मिला जब मैं ब्रहमचर्य और व्यभिचार पर तक़रीर कर रहा था.....मासटर तुम ठहरे पिंजरे के शेर मगर हो मेरे पक्के दोस्त, अब तुम से क्या छुपाना....मुझे ख़याल आ गया था उस रात मैं कहाँ गया था." [:)]
मैं ने अपना सिर ठोंक लिया था.
मुल्ला मस्का लगाते हुए बोला, "कुछ भी कहो, मासटर फार्मूला तुम्हारा ही काम आया था."
मुल्ला अपनी औकात पर आ गया था, जरूर मुझ से कुछ वसूलना था या कोई काम करवाना था. बुद्धिजीवी इसी तरह ठगे जाते हैं और वे भी इसी तरह ठगा करते हैं..अचानक सद्व्यवहार कि बौछार करके, सहमती का माहौल बना के.
और मैं भोला बुद्धिजीवी बहुत खुश हो गया था,
मुल्ला मेरी बोन चाइना की टी सेट की ऐसी-तैसी कर रहा था.....चाय कप से सौसर में डाल कर सुड़क रहा था, नाश्ता उड़ा रहा था. मैं बुद्धिजीवी नगण्य सा बना चुप चाप सुरक्षा-असुरक्षा, संबंधों, मैत्री, गिरते नैतिक मूल्यों इत्यादि पर सोच रहा था. मन के किसी कोने से आवाज़ आ रही थी मुल्ला आज कुछ मांगने वाला है. [:)]
मानव धर्मी हो गए हैं मुल्ला आजकल. आयोजकों द्वारा सभाओं में बोलने के लिएमुल्ला को जगह जगह बुलाया जाता है ( ऑफ़ कोर्स अगेंस्ट पेमेंट--मुल्ला कि दरें कम हैं ना इसलिए ) . हिन्दू और जैनों में मुल्ला ज्यादा लोकप्रिय हो गएँ हैं, कारण एक विधर्मी जब आपके धर्म कि बातें करने लगता है तो अपना धर्म कुछ और महान लगने लगता है. बुजुर्ग लोग कहते भी हैं कि धर्म और बच्चे अपने और बीवियां/खाविंद हमेशा दूसरों के अच्छे लगते हैं. सुना होगा आपने-"हमारे धर्म की हर बात विज्ञानसम्मत है....उस दिन गुरूजी कह रहे थे............" या "बबलू को देख कर बस का कंडक्टर इतना खुश हुआ कि उसको गोद में उठा लिया...मेरी गोद से ले लिया........" या "तुम से तो अच्छे बगलवाले माथुर साहब हैं........." या " देखो मालती को कितना अच्छा कैरी करती है खुद को, क्या ड्रेसिंग सेंस है.....एक तुम हो गाँव की गंवार......." हाँ तो मैं भटक गया हूँ 'एज यूजुअल' सब्जेक्ट से.....
मुल्ला कोई भी काम करने से पहिले अपनी घड़ी ज़रूर उतारते हैं. चाहे भाषण देना हो या कुछ और करना हो......एक दफा मुल्ला की नयी 'ओमेगा' खो गयी, जो शायद किसी NRI महिला श्रोता ने विशिष्ठ बनने के लिए मुल्ला को भेंट चढाई थी. मुल्ला परेशान...गयी तो घड़ी कहाँ गयी. ? सब जगह खोज ली मगर कहीं नहीं मिली. पूछ ताछ भी की ...मगर नतीजा सिफर. मुल्ला ने मुझ से अपनी व्यथा कही. मैंने कहा, "मुल्ला लगता है तुम्हारे किसी श्रोता का काम है यह, क्योंकि धर्म सभाओं में धर्म का उल्लंघन करना आम बात है, जूते चप्पलों, छतों, चैन ,घड़ी, पर्स इत्यादि का इन्ही गेद्रिंग्स में 'चेंज ऑफ़ हेंड्स ' होता है........और भी बहुत कुछ होता है," मैंने तनिक शर्मा कर कह डाला था मेरे यार मुल्ला को.
फिर कहा मैंने, " मुल्ला ! आजकल तुम लगातार एक ही संस्था की सीमित श्रोताओं वाली सभाओं में बोल रहे हो तो चोर का क्ल्यू वहीँ से हासिल होगा. कल तुम 'चोरी' पर बोलो और श्रोताओं के चेहरे पढो, उम्मीद है कि क्ल्यू मिल जाये."
मुल्ला अगले रविवार जब मेरे पास आया तो 'ओमेगा' पहने हुए था. मुझे भी तारीफ़ की तशनगी सताने लगी. मैंने कहा, "मुल्ला मैंने सही मशविरा दिया था ना, देखो तुम्हारी 'ओमेगा' मिल गयी."
मुल्ला बोला, "यही तो तुम बुद्धिजीवियों की समस्या है. हर बात बेबात में श्रेय लूटना चाहते हो....भई इसका क्ल्यू जानने क्र खातिर मैं 'चोरी' पर बोला ज़रूर था,मगर उस दिन नहीं क्ल्यू तो मिला जब मैं ब्रहमचर्य और व्यभिचार पर तक़रीर कर रहा था.....मासटर तुम ठहरे पिंजरे के शेर मगर हो मेरे पक्के दोस्त, अब तुम से क्या छुपाना....मुझे ख़याल आ गया था उस रात मैं कहाँ गया था." [:)]
मैं ने अपना सिर ठोंक लिया था.
मुल्ला मस्का लगाते हुए बोला, "कुछ भी कहो, मासटर फार्मूला तुम्हारा ही काम आया था."
मुल्ला अपनी औकात पर आ गया था, जरूर मुझ से कुछ वसूलना था या कोई काम करवाना था. बुद्धिजीवी इसी तरह ठगे जाते हैं और वे भी इसी तरह ठगा करते हैं..अचानक सद्व्यवहार कि बौछार करके, सहमती का माहौल बना के.
और मैं भोला बुद्धिजीवी बहुत खुश हो गया था,
मुल्ला मेरी बोन चाइना की टी सेट की ऐसी-तैसी कर रहा था.....चाय कप से सौसर में डाल कर सुड़क रहा था, नाश्ता उड़ा रहा था. मैं बुद्धिजीवी नगण्य सा बना चुप चाप सुरक्षा-असुरक्षा, संबंधों, मैत्री, गिरते नैतिक मूल्यों इत्यादि पर सोच रहा था. मन के किसी कोने से आवाज़ आ रही थी मुल्ला आज कुछ मांगने वाला है. [:)]
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