Monday, September 28, 2009

दशहरा.........

..

बहादुरी के मायने
खून-खराबा और
अतिक्रमण हो गए थे
मानवता
हो गयी थी चैरी
जीत और हार की
इंसान बँट गए थे
दोस्त और दुश्मनों में
शौर्य ने स्नेह को
दिया था पछाड़
तहरीर लिख दी गयी थी
चाहिए और ना चाहिए की
बातें होती थी
अहम् रुतबों और सन्मानों की
फ़र्ज़ के नाम पर चढ़ती थी
बलि अरमानों की.............

छोड़ के तलवार
अपनाया था मैंने
जब कलम को
हंसा था
हर कोई
मुझ पर.........
भूल कर कि
बुद्ध और महावीर भी
क्षत्रिय थे
फर्क इतना था
किसी ने बाहर के शत्रुओं को
जीत कर मनाया था दशहरा
किसी ने अंतर के अरियों को
कर पराजित
सीखाया था विश्व को
प्रेम का ककहरा.......

No comments:

Post a Comment