कथन बाती का :
दीपक !
पराई चिंता में
क्यों जला रहा है
ह्रदय अपना ?
जलते जलते
जल जाता है यूँ
तेरा हर सपना.
वचन दीपक का :
तिमिर के अस्तित्व से
ना हो ग्रसित
निछत्र धरती,
ऐ बाती !
सार्थक है यह
जलना मेरा,
सिद्धि उपहार
इस तप से पा
बन काजल
ज्योत नयन में
जगा सकूँ
ऐसा परम
कर्मफल मेरा.................
दीपक !
पराई चिंता में
क्यों जला रहा है
ह्रदय अपना ?
जलते जलते
जल जाता है यूँ
तेरा हर सपना.
वचन दीपक का :
तिमिर के अस्तित्व से
ना हो ग्रसित
निछत्र धरती,
ऐ बाती !
सार्थक है यह
जलना मेरा,
सिद्धि उपहार
इस तप से पा
बन काजल
ज्योत नयन में
जगा सकूँ
ऐसा परम
कर्मफल मेरा.................
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