Tuesday, September 1, 2009

उठ मंजिल मनुहार करै ..............(प्रभाती)

भोर भयो भाग्यो अंधियारों
पंछी जय जय कार करै,
रात बसेरो लियो बटोही
उठ मंजिल मनुहार करै ..............

झगड़ मथैनी दही बिलोवे
बालक धूम मचावै है,
धुओं बादल चूल्हों उठावे
दूध उफनतो जावे है,

कण कण प्राण जगे धरती पर
हर्ष उल्लास चहकार करै,
भोर भयो भाग्यो अंधियारों
पंछी जय जय कार करै...............

सोकर सपना देख रह्यो तूँ
घड़ी शुभ बीती जावै है
दश दिशी गूंज रही शहनाई
क्यों तू समय गवाएं है,

नज़र एक पाने को तेरी
कुदरत खूब सिंगार करै,
रात बसेरो लियो बटोही
उठ मंजिल मनुहार करै ............

दिल कोमल है फूल सो तेरो
निश्चय दृढ पत्थर सो है
प्रेम तेरो है सेज पुसब की
तेज़ तेरो ससतर सो है ,

करे आरती जलध तुम्हारी
गगन झुकै सतकार करै,
रात बसेरो लियो बटोही
उठ मंजिल मनुहार करै ...............

पथ दुरगम की चिंता क्यूँ है
साँचो साथ स्वयम को है
आतमा अजर अमर है तेरी
झूठो डर क्यूँ जम को है,

चार दिनों की है जिंदगानी
क्यूँ तूँ कपट ब्योहार करै,
रात बसेरो लियो बटोही
उठ मंजिल मनुहार करै ............

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