Sunday, September 13, 2009

बातें जागृत मन की............

१)

बातें होती
पाप पुण्य की
होती बातें
इन्द्रिय-दमन की
बातें होती
विचार शमन की
कर लें बातें
जागृत मन की.........

२)

इन्द्रियों के सहारे
जग है दृष्टव्य
रूप
रस
गंध
शब्द
स्पर्श........
प्रदत है
जग के मंतव्य.......

३)

खो जाते क्यों
चकाचौंध में
बन अतीन्द्रिय हम
जियें बौध में ..............

४)

शब्द तीन
का लें हम
प्रमेय
ज्ञेय
हेय
एवम
उपादेय ..........

५)

ज्ञेय
विश्व का
प्रत्येक पदार्थ
प्रिय अप्रिय
अनुभव का स्वार्थ
साक्षी भाव से
हम अपनायें
रग द्वेष विमुक्त
हो पायें......

६)

देखें
जाने
परखें सब को
हेय जो हैं
त्यागें हम उस को,
उपादेय को हम अपनाएं
विवेक जनित
प्रसन्नता पायें.........

७)

क्यों हों
हम इन्द्रिय
वशीभूत
कर दमन बने
हम क्यों
अवधूत..........

जागृत हो
हम जीते जायें
अमृत
जीवन का
पीते जायें............


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