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Baaten Vinesh Ki
Tuesday, August 3, 2010
आश्रित.
# # #
मैने किया
सर्वस्व अर्पित,
समझा तू ने
आश्रित,
ना समझा तू
बात ह्रदय की,
कर दिया
सब कुछ
विस्मृत...
परिभाषाओं के
इस अंतर ने,
कैसा खेल
रचाया,
भ्रम के परदे ने
अपने को
बना दिया
पराया...
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अशीर्षक..... ...
दो बातें बारिश की...........
निश्चय.....
बांस.......(आशु रचना )
निगाह ...
दर्पण...
निर्लिप्त हुए हो तुम योगी !
तू आज मुझे ना टोक प्रिये !
चाहत का कैसा हुआ यह असर है.
पिया के बिना...(आशु कविता)
कल ख्वाब में जाने क्या महसूस हुआ था.......
भक्ति...
औझल.......
कौन सा भाई ?
बातें महावीर की..
शादमां ...
परीक्षा.....(आशु रचना )
नक्षत्र भी है तू ही...
अवलंबन...
मंथर...(आशु कविता)
रीछ .....(आशु रचना)
रोशनी और अँधेरा ..... (आशु रचना)
दाता...
मंत्र मुग्ध...
तपिश...
चन्द अशआर यूँ ही .....
कोमल कोमल...
एक सोच..(गोपनीयता और निजता)
नया जन्म ...
स्वयं एवं अहम् (Self And Ego)-आशु रचना
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Padhta hun, padhata hun, khud ki khoz ke safar men hun.
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