Wednesday, August 25, 2010

बांस.......(आशु रचना )


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कटा
छंटा
छिद्रित हुआ
बन गया
बांस से
बांसुरी,
पाकर
कान्हा के
अधरों का स्पर्श
समा कर
स्वयं में
उनके श्वास,
गुज़र जाने
देकर उन्हें
निज देह से,
हो सकी
उत्पन्न
संगीत लहरी,
सुन कर जिसे
झूम उठा
आसमान,
खिल उठी
धरा,
दौड़ी
गोपिकायें
घटित हुआ
महारास
पुलक उठी
दिशाएँ....
हो गया
विस्मृत
पोंगरा सा
शुष्क बांस,
बनकर
मुरलिया
मधुसुदन की......

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