Sunday, August 22, 2010

दर्पण...

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दिखा रहा हूँ
दर्पण
एक अरसे से
औरों को,
कहे जा रहा हूँ
पहचान तो लो
कौन हो तुम ?
कैसी है शक्ल
तुम्हारी ?
मिला सको
ताकि
तुम औरों से
सूरत तुम्हारी
जो बिखरे-फैले हैं
आसपास है तुम्हारे...
देखता नहीं मैं
बिम्ब अपना
दर्पण में,
कहते हो ना तुम
"तुम नहीं हो औरों से ..."

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