Thursday, August 19, 2010

तू आज मुझे ना टोक प्रिये !

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अवरुद्ध ना हो अविरल धारा
ना व्यर्थ बहे अमृत सारा
नेह प्रवाह ना रोक प्रिये !
निशा बावरी मदमाती यह
तू आज मुझे ना टोक प्रिये !

चन्दन सा सौरभमय ये तन
प्रेषित नयन अभिसार निमंत्रण
हृदयन स्पंदन आतुर है
फिर क्यों झूठे संयम का चित्रण,
संतप्त बदन, नैसर्गिक बन
पूरे करलें सब शौक प्रिये !
तू आज मुझे ना टोक प्रिये !

व्याकुल तुझ में मिल जाने को
है रोम रोम खिल जाने को
भ्रमर बना गुन्जार करूं
ना चिंतित मैं मिट जाने को
अब छोड़ अदा, सुन ले यह सदा
संयोग बना दे योग प्रिये !
तू आज मुझे ना टोक प्रिये !

अंतर्मन में बस बसी है तू
मेरे कण कण में रची है तू
तुझ बिन मेरा अस्तित्व नहीं
प्रीतम बिन कोई सतीत्व नहीं
प्रेम है यह, नहीं भोग प्रिये !
तू आज मुझे ना टोक प्रिये !

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