Monday, August 23, 2010

निगाह ...

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निगाह ने
आगाह किया,
ना माना
मन चंचल,
झूठला दिया
उसने
"आँखों देखा सच
कानो सुना झूठ",
ललचाया
इठलाया
इतराया और
कह दिया :
नहीं मानता
मैं तो
आँख की
कान की
मस्तिष्क की
ह्रदय की,
सब का पता है
तुम्हें
मेरा नहीं
दम है तो
दिखाओ
पकड़ के
मुझ को.....!

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