नया जन्म...
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ज़िन्दगी
चलती नहीं
एक ढर्रे पर
आता रहता है
बदलाव
जर्रे जर्रे पर...
सोचो जरा
क्या थे
क्या हो गए हैं हम,
स्वयं के
विकास का
आज भी
जारी है क्रम...
असीम अनुकम्पा
अस्तित्व की,
खुद को
जानने लगे हैं
हम,
अपने अन्तरंग को
लगे
पहचानने हैं
हम...
'पहचान'
अस्तित्व का
पर्याय नहीं है ,
अस्तित्व से
अलग हों हम
यह कोई
उपाय नहीं है .....
एक नन्हे से
हिस्से हैं
हम विराट के,
है बस यही
अस्तित्व हमारा,
सोचो
हो सकता है
यह कैसे
समग्र
कृतृत्व हमारा....
स्व-पहचान के
पश्चात भी
देखा करते हैं
खुद को
होकर जुडित
औरों से,
पार होने की
लिए तमन्ना
अफ़सोस !
रुके रहते हैं
हम
छोरों पे...
अंतर की
बातों का
जवाब
बाहर
नहीं मिलता,
मरुभूमि में
साथी !
गुलशन
कभी नहीं
खिलता....
निज को ही
देना है
लेना भी है
स्वयं को,
छोटी है
दुनियावी बाते
रखना है
लक्षित
बस
परम को .....
हुआ है
नया जन्म
मना लो
उत्सव इसका,
रस्मो रवाज कायदे,
जानो
होते हैं
बर्चस्व किसका...?
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