(१)
जिन्दा रखने इस जिस्म को चन्द सांस होते हैं,
रूह को कायम रखने को बस एहसास होते हैं,
चाहत को राहत नसीब, मुश्किल है ऐ दोस्त !
बेचैनियों के मंजर तो हमारे आसपास होते हैं..
(२)
यारों इंतज़ार हमारा उनका सरमाया है
जेहन अपना तो ना जाने क्यूँ भरमाया है,
यादें तो आती है जो होते दूर हैं हम से,
जब भी सोचा उनको अपने पास पाया है.
(३)
आहट किसी की पे थम से जाते हैं वो,
अचानक ना जाने क्यूँ सहम जाते हैं वो,
सहूलियत उनकी जब होती है मुबारिक,
खुद ब खुद महफ़िल में ज़म से जाते हैं वो.
(४)
शिकवे करना किसी से कितना आसान होता है,
सुना है ये इजहारे मोहब्बत का सामान होता है,
सुनते रहो यारों उनके बयान-ए-जुदाई को
यही तो हुस्न का इश्क पे एहसान होता है.
जिन्दा रखने इस जिस्म को चन्द सांस होते हैं,
रूह को कायम रखने को बस एहसास होते हैं,
चाहत को राहत नसीब, मुश्किल है ऐ दोस्त !
बेचैनियों के मंजर तो हमारे आसपास होते हैं..
(२)
यारों इंतज़ार हमारा उनका सरमाया है
जेहन अपना तो ना जाने क्यूँ भरमाया है,
यादें तो आती है जो होते दूर हैं हम से,
जब भी सोचा उनको अपने पास पाया है.
(३)
आहट किसी की पे थम से जाते हैं वो,
अचानक ना जाने क्यूँ सहम जाते हैं वो,
सहूलियत उनकी जब होती है मुबारिक,
खुद ब खुद महफ़िल में ज़म से जाते हैं वो.
(४)
शिकवे करना किसी से कितना आसान होता है,
सुना है ये इजहारे मोहब्बत का सामान होता है,
सुनते रहो यारों उनके बयान-ए-जुदाई को
यही तो हुस्न का इश्क पे एहसान होता है.
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