Wednesday, August 25, 2010

दो बातें बारिश की...........

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(१)
तेज़ हवा है कि
भोंके जा रही है
आवारा कुत्ते की तरह,
बारिश है कि
बरसे जा रही है
रुके बिना ,
पानी है कि
खेतों
गाँवों
शहरों से
बन कर धाराएँ
मिल रहा है
नदी में,
पंछी देखो
बैठ गए हैं
छुप कर
घोंसलों में,
औलाद आदम की
इंसान है कि
झूझ रहे हैं,
करने पूरे
फ़र्ज़ दुनियावी
पहन कर
बरसातियां
तान कर
छतरियां,
बढे जा रहे हैं,
खेतों
कारखानों
दूकानों
दफ्तरों की जानिब
ताकि रुक ना जाए
चक्का
ज़िन्दगी का...

(२)

या खुदा !
नदी लगी है
उफनने,
दोनों मोहब्बतबाज़
ज़मीं और आब
हो गए हैं बेताब
समा जाने को
एक दूसरे में,
टूट गया है
सब्र उनका,
छोड़ कर
लिहाज़ और हया,
देखो ना
किस बेशर्मी से
किया है शुरू
खेलना खुलकर
खेल निगौड़ा इश्क वाला,
होगी जल्द ही
बाहें दोनों की
गले में
एक दूजे के,
और
यह उबलता इश्क
ना जाने
लायेगा
कैसी तबाही ?
कहते तो हैं
मोहब्बत बनाती है
बिगाड़ती नहीं,
मगर
मगर......?????????????

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