Friday, August 6, 2010

एक सोच..(गोपनीयता और निजता)

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अनिवार्य बीज को
तिमिर और गोपन
धरा गर्भ में,
वांछित हैं
सघन अंतरंगता
गहन एवं निकटतम
सम्बन्ध में..

प्रेमी द्वय
होते हैं स्पंदित
संग एक दूजे के
जैसे अभिन्न प्रकार,
पिघल पिघल
विलय हो जाते
होने एकाकार....

संभव किन्तु होता
तब ऐसा
ना हो जब
कोई दर्शक
और
पर्यवेक्षक जैसा...

हेतु पल्लवन
प्रेम संबंधों के
अत्यावश्यक है
गोपनीयता
एवं
निजता,
अंतर का यह योग
मात्र अंतरंगता में
फलता....

नहीं रहना
वांछित किन्तु
साथ अनवरत
अन्धकार का,
बीज भी करता वरण
मृत्यु का
यदि नहीं पाता
प्रकाश सूर्य का....

हेतु अंकुरण ,
सामर्थ्य जुटाने,
पुनः जन्मने,
'होना'होता उसको
गहन अन्धकार में,
हाँ आ जाता है
बन कर सक्षम
फिर तले आकाश
खुले बाहर में....
करने हेतु
सामना
कायनात का,
प्रकाश,
तूफान और
बरसात का....

मित्र !
उठा पाता वह
इस बीड़े को,
यदि पकड़ी हो
जड़ें
गहरी उसने
अंधकार में,
निजत्व,
गोपन,
स्वीकार समग्र में...

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