Friday, August 6, 2010

कोमल कोमल...

# # #
हंस के पंख सी
छुअन
कोमल कोमल,
जगा गई थी
तमन्नाएँ
रौं रौं में,
फिजा रंगीं रंगीं थी
माहौल था
मस्त मस्त,
मौका भी था
दस्तूर भी,
लग गया था
गले वो
कोमल कोमल,
भर के मुझे
बाँहों में अपनी,
रोशनी भी थी
कोमल कोमल,
खुशबू ही खुशबू थी
हर सूं,
संगीत था
मधुरिम मधुरिम,
थिरक रहे थे
कदम
सधे सधे से,
नशा था
सुरूर था,
होश भी था
कायम कायम,
थकन ने
दे डाला था
लुत्फ
नायाब नायाब सा,
रात ढले जा रही थी,
जिस्म पिघल रहे थे,
रूह मिल रही थी
रूह से...
सब कुछ हुए
जा रहा था
कोमल कोमल,
आँख खुली थी
और
दे गया था ख्वाब
चन्द एहसास
कोमल कोमल...

No comments:

Post a Comment