Thursday, August 19, 2010

चाहत का कैसा हुआ यह असर है.


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मेरी मन्नतें अब हुई बेअसर है
ज़माने को इसकी पूरी खबर है .

मुझे देख कर मुस्कुराते नहीं वो
चाहत का कैसा हुआ यह असर है.

कदम से कदम मिलाते नहीं वो
वफ़ा का कठिन ये कैसा सफ़र है.

अक्स देखते रकीब आते जाते
नदी में न उठती कोई लहर है.

खड़ा हूँ मैं कब से खुद को सँवारे
ना जाने किस पे उनकी नज़र है.

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