Wednesday, August 18, 2010

भक्ति...


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(१)

मौत ही है भक्ति
जिस में
मिट जाता है
बन्दा......
साँसे उसकी
जीना उसका
सोना और उठना उसका
नींद भी उसकी
ख्वाब भी उसके
चलना भी उसका
ठहरना भी,
हर नफस में
वही वही
सब गलत
बस वही है सही...

(२)

भक्ति मीरा ने की
भक्ति सूर ने की
बुल्लेशाह ने लगायी
लौ उस से
रबिया ने मिटाई
हस्ती उसमें
रैदास ने बसाई
बस्ती उसमें
मोहब्बत की
ऊँचाई है भक्ति
जमीं की नहीं
आसमां की ताक़त है
भक्ति....
(३)

भगवान भक्त का
मुरीद बन जाता है
आगे आगे बन्दा
पीछे वो चले जाता है
अरे अनजाने में बन्दा
मालिक बने जाता है
कुछ भी हो मगर
बस नाम परवरदिगार का
लिए जाता है...

भक्ति दिखाती है सब में
नूर उसका
भक्त मुआफ कर सकता है
कुसूर किसी का
पाक हो जाता है
जमजम के आब की तरहा
बहता रहता है बन्दा
गंगा के बहाव की तरहा
देना होता है कठिन
इम्तेहान भक्तों को
भूलना होता है उन्हें
दुनियावी नुक्तों को
भक्त शराब उसके नाम की पीता है
धरती पर वो उसके लिए जीता है,
वही रिंद वही साकी
वही मयखाना है
शम्मा वही
वही तो परवाना है
सच है बस मौला
बाकी सब आना जाना है...

भक्ति में डूबकर इंसान
खुदा को पाता है
इंसानियत की रोशनी से
कायनात को
जगमगाता है
रुक नहीं रही है कलम
भक्ति की बात लिखते
अलविदा यारों
थक ना जाओ तुम
पढ़ते पढ़ते...

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