Monday, August 16, 2010

बातें महावीर की..

परम वैज्ञानिक धर्म जिन धर्मं
अनेकान्त शांति का मंत्र प्रमुख
स्वसाधना-महाव्रतों जनित शुद्धि से
संभव प्राप्य भगवतता का सुख

कर्मकांड,पाखंड अंधविश्वास
इत्यादि अतियों में जनता जब भरमाई थी
पुरुषार्थ की शिक्षा सक्रिय
वर्धमान महावीर ने फरमाई थी

विवेकपूर्ण जीवन से हम
स्व-कल्याण स्वयं कर सकते हैं
शुद्ध भावना को अपना क़र
संभव विश्व-मैत्री कर सकते हैं.

अपने सद्कर्म, त्याग, तपस्या, स्वाध्याय से
कर्म क्षय कर सकते हैं
विशुद्ध व्यक्तितव का निर्माण करें तो
स्वयं भगवान हम बन सकते हैं.

ऊँच नीच, वृहत-लघु, नर-नारी भेद मिटाए थे
आध्यात्म उच्चता हेतु समान अवसर सुझाये थे
सूक्ष्म जीव को कर परिभाषित
“जीवो और जीने दो” के उदघोष जगाये थे.

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