Monday, August 16, 2010

शादमां ...


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'शादमान' को
देखा
जर्सी सिटी की
ग्रोव स्ट्रीट पर,
लगा है
एक बोर्ड
दरवाज़े पर :
'पाकिस्तानी'
'इंडियन'
फ़ूड,
फैली हुई थी
मिली जुली
खुशबू
उस मसालों की
उन खानों की
जो उतने ही
हिन्दुस्तानी है
जितने कि
पाकिस्तानी,
बात बात में
यही जुमला
दोनों ही देशों से
आये 'देसियों' के
मुंह से निकलता है :
'हमारे' यहाँ
ऐसे होता है,
ना कि 'तुम्हारे' यहाँ
या
''मेरे यहाँ ,
महसूस होता है
बिन बोला
'अपनापन',
शादमां हूँ मैं,
सात समंदर पार
दोनों का साँझा
गुलशन खिलते देख,
क्योंकि वही तो
सांझी हकीक़त है
इस पार और
उस पार के
लोगों की,
एक ही तो है
हमारे स्वाद,
हमारे भाव,
हमारे आंसू ,
हमारी खुशियाँ,
हमारे लहजे
हमारी गालियाँ..

(शादमान एक मोडरेट सा पाकिस्तानी रेस्टोरेंट है...जहां 'हमारा' सा 'देसी' खाना मिलता है.)

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